क्षेत्रीयवाद पर अनुच्छेद | Paragraph on Regionalism in Hindi.
प्रादेशीकरण शब्द के कई अर्थ होते हैं । इसका एक प्रयोग यह भी है कि जिसमें केन्द्रीय प्रशासन अपने प्रशासकीय अधिकारों का विकेन्द्रीकरण करता है । दूसरा यह है कि जब किसी वर्तमान राज्य के नेतागण इसके कुछ भाग को अलग करके स्वायत्तता की मांग करते हैं, तो यह भी प्रादेशीकरण है ।
उत्तराखण्ड, झारखण्ड व छत्तीसगढ़ राजनीतिक प्रदेशों का निर्माण प्रादेशीकरण का सशक्त उदाहरण है । वर्तमान समय में उत्तरप्रदेश में हरित प्रदेश के निर्माण की मांग इसी विचारधारा की उपज है । स्पष्ट है कि वर्तमान समय में अनेक देश अपने राजनीतिक उपप्रदेशों (Sub-Division) की सीमाओं से संतुष्ट नहीं हैं, क्योंकि वे समाज के अनेक वर्गों के लोगों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते है ।
समाज के विभिन्न वर्गों के बीच रोष पनपना प्रादेशीकरण की भावना के विकास की ओर संकेत करता है । यह प्रादेशीकरण का आधार बन जाता है । जी०डी०एच० कोल (G.D.H. Cole) ने प्रादेशीकरण को परिभाषित करते हुए बताया कि प्रादेशीकरण क्षेत्रों को परिभाषित करने का एक प्रयास है, यह क्षेत्र न केवल सामाजिक विशेषताओं के परिणाम है, बल्कि आर्थिक जीवन की विशेषता को भी बताते हैं ।
इस प्रकार के सीमांकित क्षेत्र प्रशासकीय दृष्टि से सुविधाजनक होते हैं । प्रादेशीकरण स्थानीय प्रशासन के पुनर्गठन का जनक है, तथा प्रशासनिक एंव भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का अवक्रमण है । उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि प्रदेश लक्ष्य प्राप्ति का माध्यम है । यह स्वयं लक्ष्य नहीं हैं ।
वास्तव में प्रदेश ऐसी इकाई है, जहां कि क्षेत्र विशेष के. प्राकृतिक एवं मानवीय तत्वों के सहवास एवं विशेष घटनाओं के संयोग से एक विशेष एकाकी भूदृश्य विकसित होता है । यही विशिष्ट भूदृश्य क्षेत्र के प्रदेशों में विभाजन या सीमांकन करने का आधार बन सकता है । इस विशिष्ट विकसित भूदृश्य को तभी पहचाना जा सकता है, जबकि उस क्षेत्र का निरीक्षण किया जाये ।
अत: प्रदेशों के सीमांकन में सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ-साथ क्षेत्रीय सर्वेक्षण से प्राप्त नवीनतम सूचनाएँ एवं ज्ञान दोनों ही आवश्यक है । ऐसा विभिन्न क्षेत्रों के संतुलित विकास के लिए भी आवश्यक है । ऐसे प्रदेशों का अध्ययन ही भूगोल का मूल आधार है ।
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