अन्तरिक्ष में भारतीय उपग्रह पर अनुच्छेद | Paragraph on Indian Satellite in Space in Hindi Language!
प्रस्तावना:
आधुनिक वैज्ञानिको ने इस शताब्दी के पाँचवे दशक से अन्तरिक्ष में अपने यान भेजने प्रारम्भ किये, जिसमें उनको काफी सफलता मिली । इसके लिए रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, आदि देशो के वैज्ञानिको ने कई सफल परीक्षण किये । भारत के वैज्ञानिकों भी इस ओर ध्यान दिया । इसके परिणामस्वरूप भारत ने भी अन्तरिक्ष में अपने कदम बढ़ाये जिसमे हमे काफी सफलता मिली ।
भारतीय प्रथम उपग्रह:
भारत अतीत काल से अन्तरिक्ष के रहस्यो का पता लगाने मे सतत् प्रयत्नशील रहा है लेकिन 19 अप्रैल, 1975 ई॰ का दिन भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान के इतिहास में सदा-सदा के लिए अविस्मरणीय रहेगा । इस दिन भारतीय समयानुसार दिन के एक बजे रूसी अन्तरिक्ष केन्द्र से आर्य भट्ट नामक भारतीय उपग्रह छोड़ा गया ।
आर्य भट्ट नामक व्यक्ति ज्योतिष शास्त्र के एक प्राचीन महा विद्वान् थे जिन्होने सर्वप्रथम बीज गणित का आविष्कार किया था । इन्हीं के नाम पर भारत का प्रथम भू-उपग्रह बनाया गया ।
अन्य भारतीय उपग्रह:
7 जून, 1979 ई॰ को ‘भास्कर’ नामक दूसरा भारतीय भू-उपग्रह अन्तरिक्ष में छोड़ा गया । इसका नाम भी एक प्राचीन ज्योतिषाचार्य भास्कर के नाम पर रखा गया । दिनाक 18 जुलाई, 1980 ई॰ को ‘एस॰एल॰बी॰ 3’ द्वारा तीसरा भारतीय उपग्रह रोहिणी नाम से पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया प्रग्या ।
यह भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान के इतिहास में एक स्वर्णिम अवसर था क्योंकि यह उपग्रह प्रथम बार अपने ही प्रक्षेपण वाहन द्वारा छोड़ा गया था, जिसको भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी उपकरणों द्वारा बनाया था । इस के बाद भारत की गणना भी उन राष्ट्रो में हो गयी जो अपने प्रक्षेपण वाहनों से उपग्रहों को अन्तरिक्ष में छोड़ते हैं ।
इन्सेट का कार्यक्रम:
उपग्रह, मौसम के पूर्वाभास व संचार का एक महत्त्वपूर्ण सा धन है । इस उद्देश्य की स्थाई प्राप्ति के लिये भारत ने इन्सेट (इण्डियन नेशनल सैटेलाइट) के निर्माण का कार्यक्रम बनाया । हमारे वैज्ञानिकों ने बहुद्देशीय व बहुआयामी उपग्रह ‘इन्सेट-एक बी’ का निर्माण किया जिसको 30 अगस्त, 1983 ई॰ को अमेरिकी अन्तरिक्ष यान चेलैन्जर से सफलतापूर्वक अन्तरिक्ष में प्रतिस्थापित किया गया ।
यह भारत के लिए एक अभूतपूर्व सफलता थी जिसके माध्यम से प्रतिदिन दूरभाष, दूरदर्शन, व मौसम की जानकारी प्राप्त होती रहती है । अब यह हमारे संचार का सशक्त माध्यम बन गया है । इसके द्वारा देश के कोने-कोने में दूरदर्शन का सीधा प्रसारण सम्भव हुआ है ।
प्रथम भारतीय अन्तरिक्ष यात्री:
3 अप्रैल, 1984 ई॰ का दिन भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान के इतिहास में सदा के लिए अविस्मरणीय रहेगा । इस दिन भारत के प्रथम अन्तरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने अन्तरिक्ष में पदार्पण करने का गौरव प्राप्त किया । यह अन्तरिक्ष यान 3 अप्रैल, 1984 ईड़ को साय 3.38 बजे रूसी अन्तरिक्ष केन्द्र बेकानूर से छोड़ा गया जिसमें राकेश शर्मा के साथ दो रूसी अन्तरिक्ष यात्री यूरी मालीसेव तथा गेन्नादि स्वेकालोव भी थे ।
यह सयुक्त अन्तरिक्ष उड़ान भारत-सोवियत मैत्री का महत्त्वपूर्ण प्रतीक था । जब उनका यह अन्तरिक्ष यान अन्तरिक्ष में सोवियत अन्तरिक्ष प्रयोगशाला सैल्यूज 7 से जुड़ा उस समय उसमें पहले से ही विद्यमान तीन रूसी अन्तरिक्ष यात्रियो ने उनका स्वागत किया ।
उनका यह दृश्य दूरदर्शन पर भी दिखाया गया था । 5 अप्रैल को तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने दूरभाष से राकेश शर्मा को उनकी सफलता के लिए बधाई दी । इन्दिरा गांधी ने पूछा कि अन्तरिक्ष से भारत कैसा दिखाई दे रहा है य श्री राकेश शर्मा ने उत्तर दिया ”सारे जहाँ से अच्छा” । इस वाक्य से सारे भारतवर्ष में हर्ष की लहरें फैल गयी ।
अन्तरिक्ष विज्ञान में भारत का भविष्य-यद्यपि भारत निर्धनता, निरक्षरता, अज्ञानता, अन्धविश्वास, साम्प्रदायिकता, रूढ़िवादिता आदि से ग्रस्त है और यहाँ के राजनीतिज्ञ राष्ट्र को अपने राजनैतिक कुचक्रों व स्वार्थपरता, छल-प्रपंच से कमजोर करने में लगे हैं, किन्तु इस देश के वैज्ञानिक दिन रात विशाल राष्ट्र की अनन्त समस्याओ को विज्ञान द्वारा सुलझाने के लिए कटिबद्ध हैं ।
वैज्ञानिको की कार्य कुशलता व सूझ-बूझ से आज भारत अन्तरिक्ष संचार युग में पहुँच गया है । अनेक बार अपने अन्तरिक्ष कार्यक्रमो में असफल होने पर भी हमारे वैज्ञानिक हतोत्साहित नहीं हुए । वे अपने लक्ष्य की प्राप्ति में दृढ़ प्रतिज्ञ रहे जिसके परिणामस्वरूप अन्तरिक्ष विज्ञान में हमें कई उपलब्धियाँ प्राप्त हुई ।
इसलिए हम कह सकते हैं कि इस क्षेत्र में हमारा भविष्य उज्जल है । इसके लिये हमारे वैज्ञानिको ने कई कार्यक्रम निश्चित किये हैं ।
उपसंहार:
आज भारत के चहुमुखी विकास के लिए अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में हम अग्रसर हो रहे हैं जो देश के हित में आवश्यक भी है । इसके लिए हमारी सरकार को चाहिए कि वह हर समय वैज्ञानिको को प्रोत्साहित करे तथा उसके लिए आवश्यक साधन जुटाने में संलग्न रहे । राजनीतिज्ञो को अपनी क्षुद्र राजनीति को छोड़कर देश के विकास के लिए वैज्ञानिकों को सुअवसर प्रदान करना चाहिए ।
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