ध्वनि-प्रदूषण: स्वरूप और परिणाम पर अनुच्छेद । Paragraph on Sound Pollution in Hindi Language!
मनुष्य को प्रकृति का यह वरदान प्राप्त है कि वह बोल सकता है । उसके पास अपनी एक उन्नत भाषा है । उस भाषा में वह बातचीत कर सकता है । विचारों को समझ-समझा या उनका आदान-प्रदान कर सकता है । प्रकृति के वरदान और भाषा अर्जित कर लेने के बल पर मनुष्य गुनगुना सकता है ।
स्वर-लय में गा सकता है । चाहने और आवश्यकता पड़ने पर रो भी सकता है और चिल्ला भी सकता है । इस प्रकार समय और स्थिति के अनुसार मनुष्य को अपनी तथा अपने जैसे अन्य मनुष्यों की ध्वनियाँ सुननी पड़ती हैं । इस प्रकार की ध्वनियाँ सामान्य रूप से सुनना किसी भी प्रकार से हानिकारक नहीं कहा जा सकता ।
स्वाभाविक ही कहा जाएगा । मनुष्यों की ध्वनियों के अतिरिक्त प्रकृति और प्राकृतिक वातावरण से सुनाई देने वाली भी कुछ ध्वनियाँ हुआ करती हैं । पक्षियों का चहचहाना, पत्तों का टकराकर मरमर करना, धारा का सरसर करते हुए सरकना या बहना, बादलों और समुद्र की हल्की गर्जना आदि ।
इस प्रकार की ध्वनियों को प्रकृति का संगीत मान कर उन सबका स्वाभाविक आनन्द लिया जाता है । लेकिन जब बादल तुमुल स्वरों में गर्जने, सागर ऊंची लहरें उठाकर हुँकारने और बादलों में बिजलियाँ कड़क कर कानों के पर्दे फाड़ने लगती है, तब किसे अच्छा लगता है ? इसी प्रकार जब कई मनुष्य चिल्ला-चिल्ला कर गाने या बातें करने लगते हैं ।
दहाड़े मारकर सबको दहला देना चाहते है, तब भी कानों पर बुरा असर पड़ता है । वे फटने लगते हैं । जब भूकम्प आता है और पृथ्वी गड़गड़ाहट के साथ हिलने और फटने लगती हैं-तब यह प्राकृतिक व्यापार होते हुए भी किसी को अच्छे नहीं लगते ।
इस प्रकार के प्राकृतिक ध्वनि-विकारों से कानों के पर्दे फट जाने और व्यक्ति के बहरा हो जाने का भय बना रहता है । इसी भयप्रद ध्वनियों के प्रभाव को वास्तव में ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है । यह चाहे प्रकृति द्वारा फैलाया जाए, चाहे मनुष्यों द्वारा, कतई अच्छा नहीं माना जाता ।
आजकल हमें हर कदम पर और भी कई प्रकार की विकराल ध्वनियों से दो चार होना पड़ता है । सड़कों-बाजारों पर गूँजती और सुनाई देती रहने वाली ध्वनियों की बात तो जाने दीजिए । वह तो घर से बाहर निकलने पर ही सुनने को मिलेगी; पर आजकल तो कई बार व्यक्ति अपने घर तक में शान्त नहीं बैठ पाता ।
वहाँ भी चारों ओर से सुनाई देने वाली ध्वनियाँ उसके कानों के पर्दों और श्रवण शक्ति के लिए चुनौती बनी रहती है । आप शान्त बैठे अपना पूजा-पाठ कर रहे हैं, या कुछ पढ़-लिख रहे हैं, आपस में कोई घरेलू बात ही कर रहे हैं कि आस-पड़ोस से कहीं कोई टेपरिकार्डर उच्च स्वर में, कानों के पर्दे फाड़ देने वाले स्वर में गूँज उठता अब कर लीजिए पूजा-पाठ ! पढ़-लिख लीजिए या कर लीजिए जरूरी घरेलू बातचीत ! हो गया सब ।
उस गूंजते टेप रिकार्ड के कारण जब अपनी आवाज आपको सुन पाना संभव नहीं, तो दूसरे कैसे सुनेंगे ? कैसे लग सकता है मन पूजा-पाठ या पढ़ने-लिखने में ? आपको परीक्षा देनी है सुबह, किसी साक्षात्कार की तैयारी कर रहे हैं आप भाड़ में जाए सब । बजाने वाले को तो बस अपना मन बहलाना है । अपनी पसन्द का गाना न चाहे हुए भी आपको सुनाना ही है ।
अब आपने यदि जाकर कह दिया कि धीरे बजाइये, तो जानते हैं न, क्या उत्तर मिलता है ? यही न-कि अपना घर है, घर में बजा रहे हैं, आप मत सुनिये । अपने कान और किबाड़ बन्द कर लीजिए । इसमें आपका कोई क्या ले रहा है । अब ऐसे भले मानुसों को कौन समझाए कि यह एक प्रकार का ध्वनि-प्रदूषण है ।
इससे दूसरे की श्रवण-शक्ति के साथ-साथ आपकी अपनी श्रवण-शक्ति को भी हानि पहुँच सकती है । बहरेपन का बढ़ता रोग इस बात का प्रमाण है, पर नहीं । उन्हें तो नहीं समझना है । मन्दिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, जागरणों, कीर्तन-मण्डलियों द्वारा लाउडस्पीकर चलाकर अपने भजन-कीर्तन, आदि का विस्तार करना भी ध्वनि-प्रदूषण का एक बहुत-बड़ा हानिप्रद कारण है ।
हालांकि कानूनी तौर पर ऐसा करना गलियों-बाजारों में टैण्ट लगा कर उच्च स्वरों में लाउडस्पीकर बजाना वर्जित और दण्डनीय अपराध है; किन्तु कौन किसको रोक ? धर्म जो आड़े आ जाता है । सो बेचारे कानून के रखवाले भी अनसुनी करके रह जाते हैं ।
इन सबके अतिरिक्त मोटरों, कारों, ट्रकों, बसों, स्कूटरों आदि के जोर-शोर के बजते हार्न, धड़धड़ा कर चलते उनके पहिए, दौड़ती रेलें और उनकी ऊँची सीटियां, कल-कारखानों के बजते घुग्घू और धड़-धड़ करते मशीनों के पहिए उफ ! कितना शोर होता है इन सब के कारण ।
कई बार कानों पर हाथ रख लेने को विवश हो जाना पड़ता है । कानों में ठूँसने के लिए रुई तक खोजनी पड़ती है और भी तरह-तरह के शोर-शराबे हमारे चारों ओर गूँज कर हमें व्यथित और पीड़ित करते रहते हैं । इस प्रकार आज अन्य प्रकार के प्रदूषणों की तरह ध्वनि-प्रदूषण को संत्रस्त कर रखा है ।
ध्वनि प्रदूषण कानों की श्रवण-शक्ति के लिए तो हानिकारक है ही, तन मन की शान्ति भी हरण करने वाला प्रमाणित हुआ है । ध्वनि-प्रदूषण अपनी अधिकता के कारण कई बार व्यक्ति के सूक्ष्म स्नायु तन्तुओं में तनाव पैदा कर नींद को भगा दिया करता है ।
ध्वनि-प्रदूषण व्यक्तियों को चिड़चिड़ा और असहिष्णु भी बना दिया करता है । इससे और भी कई प्रकार की शारीरिक-मानसिक बीमारियाँ उत्पन्न हो सकती हैं या हो जाया करती हैं । इन्हीं सब कारणों से व्यक्ति को एकान्त एवं शान्त वातावरण में रहने वालों द्वारा हर समय चपट-चपट करते रहने वाले को अच्छा नहीं समझा जाता । ऐसी दशा में अपने ही हित के लिए हमें जितना भी संभव हो सके, शान्त वातावरण में शान्त मौन भाव से रहने का करना चाहिए ।
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